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Showing posts from March, 2020

कराग्रे वसते लक्ष्मी... क्यों देखते हैं सुबह अपनी हथेलियां, यह लेख आपकी आंखें खोल देगा

दिन का शुभ आरंभ  शुभ चीजों को देखने से होता है। इसके लिए भारतीय ऋषि-मुनियों ने हमें करदर्शनम यानी हाथों के दर्शन का संस्कार दिया है शास्त्रों में भी जागते ही बिस्तर पर सबसे पहले बैठकर दोनों हाथों की हथेलियों (करतल) के दर्शन का विधान बताया गया है। इससे व्यक्ति की दशा सुधरती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। जब आप सुबह नींद से जागें तो अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर पुस्तक की तरह खोल लें और यह श्लोक पढ़ते हुए हथेलियों का दर्शन करें- कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥ अर्थात मेरे हाथ के अग्रभाग में भगवती लक्ष्मी का निवास है। मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती और मूल भाग में भगवान विष्णु का निवास है। अतः प्रभातकाल में मैं इनका दर्शन करता हूं। इस श्लोक में धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और अपार शक्ति के दाता, सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु की स्तुति की गई है, ताकि जीवन में धन, विद्या और भगवत कृपा की प्राप्ति हो सके। हथेलियों के दर्शन का मूल भाव यही है कि हम अपने कर्म पर विश्वास करें। हम ईश्वर से प्रार्थना करते ...

क्या है गीता जयंती का महत्व

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भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन भागवत गीता (Bhagwat Geeta) जयंती के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता हैं। भागवत गीता का जन्म भगवान कृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। गीता में जीवन का सार हैं जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं | इसके महत्व को बनाये रखने के लिए ही “गीता जयंती महत्व  एवम स्वाध्याय परिवार का विवरण किया गया हैं। गीता में जीवन का सार हैं जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं। इसके महत्व को बनाये रखने के लिए ही गीता जयंती का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के सबसे बड़े ग्रन्थ के जन्म दिवस को गीता जयंती कहा जाता हैं।  भागवत गीता (Bhagwat Geeta) का हिन्दू समाज में सबसे उपर स्थान माना जाता हैं इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता हैं। भागवत गीता स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगो को दुश्मन के रूप में सामने देख, विचलित हो जाता हैं और उसने शस्त्र उठाने से इंकार कर देता हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवम...

कब हुआ था गीता का वाचन और इसका उद्देश्य क्या था ?

महाभारत काल, कुरुक्षेत्र का वह भयावह युद्ध, जिसमे भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था. वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था. उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवम गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उसका गांडीव (अर्जुन का धनुष) हाथो से छुटने लगा, उसके पैर काँपने लगे. उसने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया. तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया. इस प्रकार गीता का जन्म हुआ. श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई. उसे निभाने की ताकत दी. एक मनुष्य रूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्री कृष्ण ने स्वयम उसे दिया.उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवम अधिकार का बोध कराता हैं. गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया. जब गीता का वाचन स्वयम प्रभु ने किये उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था. कलयुग ऐसा दौर हैं जिसमे गुरु एवम ईश्वर स्वयम धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें. ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति को राह प्रशस्त करते हैं. इसी कार...

श्रीमद भगवत गीता जयंती स्वाध्याय परिवार (Shrimad Bhagavad Gita Jayanti Swadhyay in hindi)

गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती. यह जाति वाद से कही उपर मानवता का ज्ञान देती हैं. गीता के अठारह अध्यायो में मनुष्य के सभी धर्म एवम कर्म का ब्यौरा हैं. इसमें सत युग से कल युग तक मनुष्य के कर्म एवम धर्म का ज्ञान हैं. गीता के श्लोको में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं. मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं. इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था. उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया हैं. यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ हैं.

गीता की उत्पत्ति का विस्तार :

कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कहा जाता है कलयुग में प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयम श्री कृष्ण ने नंदी घोष रथ के सारथि के रूप में दिया था. गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था.

कब हुआ था गीता का वाचन और इसका उद्देश्य क्या था ?

महाभारत काल, कुरुक्षेत्र का वह भयावह युद्ध, जिसमे भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था. वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था. उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवम गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उसका गांडीव (अर्जुन का धनुष) हाथो से छुटने लगा, उसके पैर काँपने लगे. उसने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया. तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया. इस प्रकार गीता का जन्म हुआ. श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई. उसे निभाने की ताकत दी. एक मनुष्य रूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्री कृष्ण ने स्वयम उसे दिया.उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवम अधिकार का बोध कराता हैं. गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया. जब गीता का वाचन स्वयम प्रभु ने किये उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था. कलयुग ऐसा दौर हैं जिसमे गुरु एवम ईश्वर स्वयम धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें. ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति को राह प्रशस्त करते हैं. इसी का...

स्वाध्याय परिवार

स्वाध्याय परिवार स्वाध्याय परिवार   महाराष्ट्र  में प्रचलित एक आध्यात्मिक-आन्दोलन है।  भारत ,  पुर्तगाल ,  अमेरिका ,  यूके ,  कनाडा  और  मध्यपूर्व  में ६० लाख अनुयायी और ५० हजार केन्द्र हैं। स्वाध्याय परिवार के लोग आत्मविकास, सवयं-अध्ययन, भक्ति के कार्यक्रम तथा सामाजिक जागरूकता फैलाने वाली गतिविधियाँ चलाते हैं। पांडुरंग शास्त्री का जन्म 19 oct 1920 में चितपावन ब्राह्मण फॅमिली में महाराष्ट्र के रोहा गाव में हुवा था. पांडुरंग शास्त्री के पिता वैजनाथ शास्त्री संस्कृत शिक्षक थे और उसके माता पार्वती आठवले थे. स्कूल का शिक्षण पूरा होने के बाद पांडुरंग शास्त्री के पिता ने उसके संबधियो के सुजाव (ICS Examination) के खिलाफ जाकर उसने कुछ और सोचा था. 12 साल की उम्र में उसके पिता वैजनाथ ने पांडुरंग शास्त्री को पढने के लिए रोहा में एक अलग कोर्स बनाया जो बिलकुल भारत के तपोवन जैसा था. पांडुरंग शास्त्री के पिता ने “ सरस्वती  संस्कृत  पाठशाला  ” बनाकर उसमे पांडुरंग शास्त्री को पढ़ना शरू कर दिया. लोगो का ये मानना था की तपोवन...

स्वाध्याय का महत्त्व और लाभ

स्वाध्याय का महत्त्व और लाभ स्वाध्याय का सीधा मतलब है – स्वयं का स्वयं के द्वारा अध्ययन । सामान्यतया हमारे साथ ऐसा होता है कि हम अपना अधिकांश समय दुसरे मनुष्यों तथा वस्तुओं का अध्ययन करने में निकाल देते है । परिणामस्वरूप हमारे पास स्वयं का अध्ययन करने के लिए समय ही नहीं बचता है । जब हम स्वयं को समय नहीं दे पाते है तो आस – पास के वातावरण का रंग हमारे ऊपर चढने लगता है । जो हमें दिन – प्रतिदिन कुविचारों के कीचड़ से मैला करता रहता है । यदि हम प्रतिदिन के अपने सभी साफ – सफाई के क्रियाकलापों को बंद कर दे, तो क्या हम स्वच्छ और स्वस्थ रह पाएंगे ? कभी नहीं ! यदि हमने घर में झाड़ू लगाना बंद कर दिया तो कुछ ही दिनों में सब जगह धुल और मिट्टी ही नजर आएगी । यदि हम एक दिन के लिए भी ना नहाये तो शरीर बदबू मारने लगता है । इसीलिए हम प्रतिदिन अपनी भौतिक साफ सफाई का ध्यान बखूबी रखते है । किन्तु क्या हम अपने मन की भी साफ – सफाई का ऐसा ही खयाल रखते है ? शायद नहीं ! क्यों ? शायद इसलिए कि हमें उसकी गन्दगी दिखती नहीं । किन्तु यदि गहराई से विचार किया जाये तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष...

स्वाध्याय का अर्थ

स्वाध्याय  का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वयं का अध्ययन करना'। यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। विभिन्न  हिन्दू दर्शनों  में स्वाध्याय एक 'नियम' है। स्वाध्याय का अर्थ 'स्वयं अध्ययन करना' तथा  वेद  एवं अन्य सद्ग्रन्थों का पाठ करना भी है। जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना  स्वाध्याय  कहलाता है। आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है। स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं। सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है। स्वाध्याय  के कई अर्थ हैं- (१)  वेद  एवं वेद से सम्बन्धित सद्ग्रन्थों का अध्ययन (२) स्वयं का अध्ययन - हमने क्या किया; हम क्य...

प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं

प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं महत् संस्कृति को भूले जा रहे हैं । गलत विकृतियों में फंसे जा रहे हैं ।। लिये आसरा झूठ का जीये जा रहे हैं । प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। १ ।। चारों तरफ न्यू-ईयर का मचा ऐसा शोर है । बेगानी शादीमें अब्दूल्ला बने जा रहे हैं ।। ईस्वीसन तो याद है पर, संवत् भूले जा रहे हैं । प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। २ ।। भारत की परंपरा को खोये जा रहे हैं । जागो पहचानो खुदको, क्यों सोये जा रहे हैं ।। गुलामी के चिन्हों को क्यों ढोये जा रहे हैं । प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। ३ ।। अपनी परंपराओं का आओ मान बढायें हम । आर्यवृतके वासी हैं,अपना स्वाभिमान जगायें हम ।। न्यू-ईयरको भूल जाओ,अपना नववर्ष मनायें हम । निजगौरव को जगाओ,अरज हम किये जारहे हैं।। प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। ४।।

जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई ।जन्मदिन एक ख़ास दिन हैं जिस दिन जन्म लिया था

जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई । हमारा जन्म तभी सफल होगा जब हम यदि सच्चे अर्थ में मानव होंगे । मानव बनना हो तो हमारे अंदर कृतज्ञता का गुण का होना अत्यंत आवश्यक है । ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए नित्य तीन महत्व के समय प्रभु का स्मरण करना चाहिए उसके लिए त्रिकाल संध्या करनी चाहिए । यह बात एक भावगीत के माध्यम से समझायी गयी है, सो गीत नीचे प्रस्तुत है । इसे एक बार अवश्य पढीयेगा यह मेरा आपसे हार्दिक अनुरोध है, और यदि आपको विचार अच्छे लगे तो इसका जीवन में अनुकरण अवश्य किजियेगा तो आप सच्चे अर्थ में मानव कहलाने योग्य होंगे व आपको प्रभु स्पर्श की अनुभूति होगी व मानव जीवन सफल होगा । धन्यवाद ! Happy Birthday ! भावगीत त्रिकाल संध्या तर्ज : वो दिल कहाँ से लावूं तेरी याद जो भूलादे (फिल्म : भरोसा) वो नर पशु समान है जो प्रभु प्रेम को भूलादे । प्रभु प्रेम को समझले, त्रिकाल संध्या करले ।। दिन रात स्मृति शक्ति, और शांति हैं वे देते प्रभु प्रेम को समझकर, प्रभु स्मरण करले ।।१।। परमेश्वरसे जीवन मिला है, सदा संगमें रहता तेरे । सुबह प्रेम से उठाते, और स्मृतिदान देते ।।२।। उठते ही सबस...