प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं

प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं
महत् संस्कृति को भूले जा रहे हैं ।
गलत विकृतियों में फंसे जा रहे हैं ।।
लिये आसरा झूठ का जीये जा रहे हैं ।
प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। १ ।।
चारों तरफ न्यू-ईयर का मचा ऐसा शोर है ।
बेगानी शादीमें अब्दूल्ला बने जा रहे हैं ।।
ईस्वीसन तो याद है पर, संवत् भूले जा रहे हैं ।
प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। २ ।।
भारत की परंपरा को खोये जा रहे हैं ।
जागो पहचानो खुदको, क्यों सोये जा रहे हैं ।।
गुलामी के चिन्हों को क्यों ढोये जा रहे हैं ।
प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। ३ ।।
अपनी परंपराओं का आओ मान बढायें हम ।
आर्यवृतके वासी हैं,अपना स्वाभिमान जगायें हम ।।
न्यू-ईयरको भूल जाओ,अपना नववर्ष मनायें हम ।
निजगौरव को जगाओ,अरज हम किये जारहे हैं।।
प्रभु जाने अब हम कहाँ जा रहे हैं ।। ४।।

Comments

Popular posts from this blog

त्रिकाल संध्या / Trikaal Sandhya

श्रीमद भगवत गीता जयंती स्वाध्याय परिवार (Shrimad Bhagavad Gita Jayanti Swadhyay in hindi)

स्वाध्याय परिवार