स्वाध्याय परिवार
स्वाध्याय परिवार
पांडुरंग शास्त्री का जन्म 19 oct 1920 में चितपावन ब्राह्मण फॅमिली में महाराष्ट्र के रोहा गाव में हुवा था.
पांडुरंग शास्त्री के पिता वैजनाथ शास्त्री संस्कृत शिक्षक थे और उसके माता पार्वती आठवले थे.
पांडुरंग शास्त्री के पिता वैजनाथ शास्त्री संस्कृत शिक्षक थे और उसके माता पार्वती आठवले थे.
स्कूल का शिक्षण पूरा होने के बाद पांडुरंग शास्त्री के पिता ने उसके संबधियो के सुजाव (ICS Examination) के खिलाफ जाकर उसने कुछ और सोचा था.
12 साल की उम्र में उसके पिता वैजनाथ ने पांडुरंग शास्त्री को पढने के लिए रोहा में एक अलग कोर्स बनाया जो बिलकुल भारत के तपोवन जैसा था.
पांडुरंग शास्त्री के पिता ने “सरस्वती संस्कृत पाठशाला ” बनाकर उसमे पांडुरंग शास्त्री को पढ़ना शरू कर दिया. लोगो का ये मानना था की तपोवन शिक्षण पध्धति में अंग्रेजी नहीं पढाया जाता है लेकिन वैजनाथ शास्त्रीजी ने ये परंपरा दूर करके उसे अंग्रेजी का भी अच्छा शिक्षण दिया.
बचपन से ही उसने संस्कृत और दुसरे हिन्दू ग्रंथो की पढाई की थी.
पिछले 16 सालोसे स्वाध्याय की प्रवृति में जुड़े रहे पांडुरंग शास्त्री के पिताजी के गले में खराबी आ जाने की वजह से स्वाध्याय की पूरी ज़िम्मेदारी अब दादाजी (पांडुरंग शास्त्री) के कंधे पर थी.
22 साल की उम्र में यानि की 1942 में पांडुरंग शास्त्री ने “श्रीमद भगवद गीता पाठशाला” जो उसके पिताजी ने 1926 में बनाया था उसमे प्रवचन देना शरू कर दिया था.
1956 में दादाजी ने “तत्वज्ञान विद्यापीठ” शरू किया जिसमे सिर्फ भारतीय ही नहीं विदेशी भाषाओ का भी शिक्षण दिया जाता था.
दादाजी को शरुआत में स्वाध्याय का काम करने में बहुत मुश्केली होती थी क्युकी उसने कभी किसीसे पैसा लिया नहीं है और वो हजारो गाव में जाकर सब लोगो को जागृत करते थे.
वो शरुआत में चलकर और भाड़े से लिया हुआ साइकल लेकर अलग अलग लोगो तक पहुचते थे. लेकिन उसका संस्कार और माता पिता की देखभाल की वजह से उसने कभी भी मुह नहीं मोड़ा है.
1978 (अंदाजित) में स्वाध्याय की शरुआत हुयी थी जिसमे पांडुरंग शास्त्री के अनुययियो और दुसरे 16(शायद) लोग मिलकर पहले प्राथना करके बाद में फिर दादाजी का रिकॉर्ड किया हुवा विडियो केसेट देखना शरू हुवा.
स्वाध्याय का मतलब है खुद को पढना (self study), श्रीमद भगवद गीता के सिद्धांतो को समजना और उसे लागु करना.
स्वाध्याय एक ऐसी प्रवृति है जिसमे आप से एक भी पैसा नहीं लिया जायेगा. और दादाजी ने जिस राह पर चलने को कहा था उसी रह पर आज पूरा स्वाध्याय परिवार चल रहा है और दुसरे लोगो को भी स्वाध्याय की प्रवृति और दादाजी के साथ साथ श्रीमद् भगवद गीता के विचारो को समजाते है.
दादाजी के बाद ये ज़िम्मेदारी पूज्य दीदीजी संभालते है, कुछ लोगो ने मिलकर स्वाध्याय परिवार और दीदीजी पर पैसो के मामले में जूठा आरोप लगाया था लेकिन वो सफल नहीं हुए. और स्वाध्याय का कार्य निरंतर चलता रहा.
पांडुरंग शास्त्री आठवले के प्रयोगों
त्रिकाल संध्या :-
त्रिकाल संध्या यानि की एक दिन में तिन बार बोले जाने वाले श्लोक.
सुबह:-
सुबह उठने के साथ ही अपने दाया हाथ को देखकर 4 श्लोक बोलने होते है, श्रीमद भगवद गीता के मुताबिक अपने हाथ में भगवान होते है.
तो सुबह में सबसे पहले अपने हाथ को देखकर दिन की शरुआत करनी चाहिए.
और एक वजह है की जब हम रात को सो जाते है उसके बाद हमें कुछ याद नहीं होता है लेकिन सुबह उठते ही हमको सब याद आ जाता है. यानि की भगवान हमको स्मृति दान देते है. तो भगवान का आभार मानना तो बनता है.
और अगर वैज्ञानिक रूप से देखे तो भी इसके बहुत सारे फायदे है.
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमुले सरस्वति ।
करमध्ये तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
करमध्ये तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम् ॥
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम् ॥
दोपहर :-
दोपहर को जब हम खाना खाते है तो उसमे से भगवान हमको शक्ति दान करते है यानि की शक्ति देते है. हमारे लहू को लाल बनाते है तो दोपहर खाने से पहले भगवान को याद करना अच्छा होता है.
यज्ञ शिष्ठा शिनः षन्तो मुच्यन्ते सर्व किल बिशैहि |
भुन्जते ते त्वघं पाप ये पचन्त्यात्मा कारणात ||
भुन्जते ते त्वघं पाप ये पचन्त्यात्मा कारणात ||
यत् करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |
यत् तपस्यसि कौन्तेय, तत्कुरुश्व मदर्पणम् ||
यत् तपस्यसि कौन्तेय, तत्कुरुश्व मदर्पणम् ||
अहं वैश्वा नरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः |
प्राणापान समायुक्त, पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
प्राणापान समायुक्त, पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै |
तेजस्विना वधितमस्तु मा विद्विषावहै ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ||
तेजस्विना वधितमस्तु मा विद्विषावहै ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ||
रात :-
रात को सोने से पहले हम पुरे दिन की भाग-दोड से थक जाते है लेकिन फिर भी हमें अच्छीनींद आ जाती है और रात को शांति मिलती है. अगर वैज्ञानिक रूप से देखे तो संस्कृत में श्लोक बोलने से मन को शांति मिलती है.
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
mst
ReplyDeletejai Sri Krishna
ReplyDeleteWe should not post anything about swadhyay via this medium.
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