स्वाध्याय का अर्थ
स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वयं का अध्ययन करना'। यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक 'नियम' है। स्वाध्याय का अर्थ 'स्वयं अध्ययन करना' तथा वेद एवं अन्य सद्ग्रन्थों का पाठ करना भी है।
जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना स्वाध्याय कहलाता है। आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है। स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं।
सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
स्वाध्याय के कई अर्थ हैं-
- (१) वेद एवं वेद से सम्बन्धित सद्ग्रन्थों का अध्ययन
- (२) स्वयं का अध्ययन - हमने क्या किया; हम क्या सोच रहे हैं; हमे क्या करना चाहिये; हम किससे डर रहे हैं आदि।
- (३) बिना किसी अध्यापक के, स्वयं अध्ययन करके कुछ सीखना
योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान. ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं. इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय. स्वयम् का अध्ययन, खुद को जानना स्वाध्याय कहलाता है.
स्वाध्याय के नाम पर बहुत से लोग कह देते हैं कि आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ने चाहिए, धर्म-शास्त्र पढ़ने चाहिए, उपनिषद् पढ़ने चाहिए, और इस तरह स्वाध्याय का मतलब बाह्य अध्ययन से लगाया जाता है. शास्त्र-अध्ययन को ही स्वाध्याय कहा जाये, यह इसका केवल एक पक्ष हुआ. लेकिन अगर शब्दों को ठीक से समझा जाये तो स्वयम् का अध्ययन स्वाध्याय कहलाता है. तब आत्म-परीक्षण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-चिंतन और आत्म-शोधन स्वाध्याय के अंग बनते हैं. सामान्य रूप से लोग स्वाध्याय को ज्ञान अर्जित करने का साधन मानते हैं.
शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं. अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामथ्र्यो, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है. खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है.
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