गीता का संदेश, पहुंचे हर गांव-हर देश.

गीता का संदेश, पहुंचे हर गांव-हर देश...

भरतपाल सिंह, मथुरा: कर्म करो, फल की चिंता मत करो, गीता के इस संदेश को आत्मसात किया है भगवद् गीता पाठशाला के स्वाध्याइयों ने। इस संस्था से जुड़े सैकड़ों स्वाध्यायी गीता व उपनिषद के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य दशकों से कर रहे हैं। वह भी बिना किसी प्रचार-प्रसार व दिखावे के। पांडुरंग वैजनाथ लक्ष्मण अठावले शास्त्री के आह्वान पर गुजरात के बड़ौदा, राजकोट आदि क्षेत्रों से आने वाले स्वाध्यायी निस्वार्थ भाव से गीता का संदेश आम जनमानस तक पहुंचा रहे हैं। खास बात यह है कि ये स्वाध्यायी रेल-बस का टिकट और खाने का टिफिन तक अपने साथ लेकर चलते हैं। दूसरों के घरो का ये सिर्फ पानी भर ही पीते हैं। बाकी पूरा खर्चा स्वयं वहन करते हैं।
करीब 50 साल पहले स्वाध्याय के लिए संस्थापक महर्षि वैजनाथ लक्ष्मण अठावले ने कृपालु भगवान की लाड़ली पुत्री के रूप में श्रीमद्भगवद् गीता पाठशाला की शुरुआत की। इसमें आज तक न तो कोई ट्रस्टी हुआ, न कोई विधान है, न कोई व्यवस्थापक और न कोई मंत्री है। यह संस्था पूर्णतया ईश्वर को समर्पित है।
ये है पाठशाला की कार्यप्रणाली
यूं तो भगवद् गीता पाठशाला मुंबई में स्थित है। लेकिन इसके स्वाध्यायी पूरे देश में इसके प्रचार में जुटे हैं। गीता के सिद्धांतों के अलावा, संस्कृति, ईश्वर के प्रति समर्पण, सुबह से शाम तक की दिनचर्या बताते हैं। हफ्ते में एक दिन गांव-गांव स्वाध्याय केंद्र चलाते हैं। इस दौरान लोगों की भ्रांतियां दूर की जाती हैं, कुटुंब की भावना जगाते हैं। परिवारों को जोड़ने की मुहिम में मथुरा जनपद में ही करीब 500 से 800 स्वाध्यायी गीता के संदेशों से लोगों को जागृत कर रहे हैं।
गाए जाते हैं भावगीत व प्रार्थना
स्वाध्यायी जब किसी गांव में जाते हैं तो वहां सुबह प्रभात फेरी निकाकर 'हम तो चले जाते भगवन जहां बुलाते' जैसे भाव गीत गाए जाते हैं। प्रात: स्मरण 'कराग्रे वसते लक्ष्मी' मंत्र जाप सिखाते हैं। इसके अलावा बिस्तर छोड़ने से पहले पृथ्वी की वंदना करना भी सिखाई जाती है।
इन गांवों में चलते हैं स्वाध्याय केंद्र
जनपद के गांव सलेमपुर, नौगांव, पाली खेड़ा, नगला अमरा, मुकुंदपुर, बाकलपुर, कृष्णा नगर, हाथरस व अलीगढ़ आदि स्थानों पर स्वाध्यायी शिविर लगाए जाते हैं। इनमें जनपद के करीब 500 से अधिक स्वाध्याय परिवारों के अलावा गुजरात के राजकोट, सूरत, अहमदाबाद व बड़ौदरा आदि जगहों से स्वाध्यायी, लोगों को स्वाध्याय कराने आते हैं।
स्वाध्यायी उवाच..
स्वाध्याय कराने वाले मुकुंदपुर के हरीसिंह कहते हैं कि वैदिक संस्कृति के दैवीय तत्वों की आज के भौतिक जीवन में अत्यंत आवश्यकता है। वह बताते हैं कि वर्ष 1954 में जापान में द्वितीय विश्व धर्म परिषद में शास्त्री जी ने उक्त कथन सिद्ध किया था। अमेरिका व जापान के प्रतिनिधियों ने उन्हें आमंत्रण दिया कि वे उनके देश में रहकर वैदिक संस्कृति का प्रचार करें, लेकिन शास्त्री जी ने विनम्रता से उनका आमंत्रण अस्वीकार किया और भारत में ही रहकर संस्कृति के कार्य करने का संकल्प लिया। स्वाध्यायी मंगलसिंह, भगवान देवी कहते हैं कि विश्व धर्म परिषद में 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्' पर बोलते हुए पांडुरंग वैजनाथ अठावले ने यह भी सिद्ध किया कि श्री कृष्ण ने मानव के लिए अर्थशास्त्र, राजनीति, समाज व्यवस्था, नीतिशास्त्र व मानव को भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में अद्भुत मार्ग दर्शन दिया।

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