परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले का जीवन परिचय
परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले का जीवन परिचय
परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री एक ऐसी व्यक्ति थे जिसने श्री मद भगवद गीता को सही मायने में समज के हर एक लोगो तक पहुचाने की कोशिश की है.
स्वाध्याय परिवार और दादाजी (परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री) कभी भी स्वाध्याय परिवार की advertise न्यूज़ पेपर, social media, radio, TV या फिर किसी ओर माध्यम से नहीं करते है. ये लेख सिर्फ दादाजी के जीवन का परिचय देने के हेतु से लिखा गया है. स्वाध्याय परिवार की आचार संहिता के मुजब स्वाध्याय परिवार और दादाजी के किसी भी प्रवचन और study material या विडियो को social media पर नहीं डाल सकते जिसका यहाँ पे पूरा ख्याल रखा गया है.
पांडुरंग शास्त्री को दादाजी के नाम से भी जाना जाता है. दादाजी एक दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता (Spiritual Leader) थे जिसने स्वाध्याय परिवार के विचार को जन्म दिया था.
परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले का जीवन परिचय (Param Pujya Pandurang Shastri Athavale Biography) :-

पांडुरंग शास्त्री का जन्म 19 oct 1920 में चितपावन ब्राह्मण फॅमिली में महाराष्ट्र के रोहा गाव में हुवा था.
पांडुरंग शास्त्री के पिता वैजनाथ शास्त्री संस्कृत शिक्षक थे और उसके माता पार्वती आठवले थे.
पांडुरंग शास्त्री के पिता वैजनाथ शास्त्री संस्कृत शिक्षक थे और उसके माता पार्वती आठवले थे.
स्कूल का शिक्षण पूरा होने के बाद पांडुरंग शास्त्री के पिता ने उसके संबधियो के सुजाव (ICS Examination) के खिलाफ जाकर उसने कुछ और सोचा था.
12 साल की उम्र में उसके पिता वैजनाथ ने पांडुरंग शास्त्री को पढने के लिए रोहा में एक अलग कोर्स बनाया जो बिलकुल भारत के तपोवन जैसा था.
पांडुरंग शास्त्री के पिता ने “सरस्वती संस्कृत पाठशाला ” बनाकर उसमे पांडुरंग शास्त्री को पढ़ना शरू कर दिया. लोगो का ये मानना था की तपोवन शिक्षण पध्धति में अंग्रेजी नहीं पढाया जाता है लेकिन वैजनाथ शास्त्रीजी ने ये परंपरा दूर करके उसे अंग्रेजी का भी अच्छा शिक्षण दिया.
बचपन से ही उसने संस्कृत और दुसरे हिन्दू ग्रंथो की पढाई की थी.
पिछले 16 सालोसे स्वाध्याय की प्रवृति में जुड़े रहे पांडुरंग शास्त्री के पिताजी के गले में खराबी आ जाने की वजह से स्वाध्याय की पूरी ज़िम्मेदारी अब दादाजी (पांडुरंग शास्त्री) के कंधे पर थी.
22 साल की उम्र में यानि की 1942 में पांडुरंग शास्त्री ने “श्रीमद भगवद गीता पाठशाला” जो उसके पिताजी ने 1926 में बनाया था उसमे प्रवचन देना शरू कर दिया था.
1956 में दादाजी ने “तत्वज्ञान विद्यापीठ” शरू किया जिसमे सिर्फ भारतीय ही नहीं विदेशी भाषाओ का भी शिक्षण दिया जाता था.
दादाजी को शरुआत में स्वाध्याय का काम करने में बहुत मुश्केली होती थी क्युकी उसने कभी किसीसे पैसा लिया नहीं है और वो हजारो गाव में जाकर सब लोगो को जागृत करते थे.
वो शरुआत में चलकर और भाड़े से लिया हुआ साइकल लेकर अलग अलग लोगो तक पहुचते थे. लेकिन उसका संस्कार और माता पिता की देखभाल की वजह से उसने कभी भी मुह नहीं मोड़ा है.
1978 (अंदाजित) में स्वाध्याय की शरुआत हुयी थी जिसमे पांडुरंग शास्त्री के अनुययियो और दुसरे 16(शायद) लोग मिलकर पहले प्राथना करके बाद में फिर दादाजी का रिकॉर्ड किया हुवा विडियो केसेट देखना शरू हुवा.
स्वाध्याय का मतलब है खुद को पढना (self study), श्रीमद भगवद गीता के सिद्धांतो को समजना और उसे लागु करना.
स्वाध्याय एक ऐसी प्रवृति है जिसमे आप से एक भी पैसा नहीं लिया जायेगा. और दादाजी ने जिस राह पर चलने को कहा था उसी रह पर आज पूरा स्वाध्याय परिवार चल रहा है और दुसरे लोगो को भी स्वाध्याय की प्रवृति और दादाजी के साथ साथ श्रीमद् भगवद गीता के विचारो को समजाते है.
दादाजी के बाद ये ज़िम्मेदारी पूज्य दीदीजी संभालते है, कुछ लोगो ने मिलकर स्वाध्याय परिवार और दीदीजी पर पैसो के मामले में जूठा आरोप लगाया था लेकिन वो सफल नहीं हुए. और स्वाध्याय का कार्य निरंतर चलता रहा.
पांडुरंग शास्त्री आठवले के प्रयोगों
त्रिकाल संध्या :-
त्रिकाल संध्या यानि की एक दिन में तिन बार बोले जाने वाले श्लोक.
सुबह:-
सुबह उठने के साथ ही अपने दाया हाथ को देखकर 4 श्लोक बोलने होते है, श्रीमद भगवद गीता के मुताबिक अपने हाथ में भगवान होते है.
तो सुबह में सबसे पहले अपने हाथ को देखकर दिन की शरुआत करनी चाहिए.
और एक वजह है की जब हम रात को सो जाते है उसके बाद हमें कुछ याद नहीं होता है लेकिन सुबह उठते ही हमको सब याद आ जाता है. यानि की भगवान हमको स्मृति दान देते है. तो भगवान का आभार मानना तो बनता है.
और अगर वैज्ञानिक रूप से देखे तो भी इसके बहुत सारे फायदे है.
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमुले सरस्वति ।
करमध्ये तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
करमध्ये तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम् ॥
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम् ॥
दोपहर :-
दोपहर को जब हम खाना खाते है तो उसमे से भगवान हमको शक्ति दान करते है यानि की शक्ति देते है. हमारे लहू को लाल बनाते है तो दोपहर खाने से पहले भगवान को याद करना अच्छा होता है.
यज्ञ शिष्ठा शिनः षन्तो मुच्यन्ते सर्व किल बिशैहि |
भुन्जते ते त्वघं पाप ये पचन्त्यात्मा कारणात ||
भुन्जते ते त्वघं पाप ये पचन्त्यात्मा कारणात ||
यत् करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |
यत् तपस्यसि कौन्तेय, तत्कुरुश्व मदर्पणम् ||
यत् तपस्यसि कौन्तेय, तत्कुरुश्व मदर्पणम् ||
अहं वैश्वा नरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः |
प्राणापान समायुक्त, पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
प्राणापान समायुक्त, पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ||
ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै |
तेजस्विना वधितमस्तु मा विद्विषावहै ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ||
तेजस्विना वधितमस्तु मा विद्विषावहै ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ||
रात :-
रात को सोने से पहले हम पुरे दिन की भाग-दोड से थक जाते है लेकिन फिर भी हमें अच्छीनींद आ जाती है और रात को शांति मिलती है. अगर वैज्ञानिक रूप से देखे तो संस्कृत में श्लोक बोलने से मन को शांति मिलती है.
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
बाल संस्कार केंद्र :-
बाल संस्कार केंद्र में छोटे लड़के और लडकियों को साथ में बिठाकर केंद्र चलाया जाता है जो कोई एक बड़ा आदमी चलाता है. जिस में श्लोक और रमत गमत और भावगीत गाना होता है.
छोटे बचोको जानकारी भी मिलती है श्लोक भी शिखते है और उसका मनोरंजन भी हो जाता है.
युवा केंद्र :-
युवा केंद्र में सब युवान (15-30 साल के)(Only MEN) मिलकर केंद्र चलाते है.
युवती केंद्र :-
युवती केंद्र में आस पास की युवती (15-30 साल की)(Only Girls) मिलकर केंद्र चलाते है.
स्वाध्याय केंद्र :-
स्वाध्याय केंद्र के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है पर शायद इसे विडियो केंद्र के नाम से भी जाना जाता है . जिसमे दादाजी का रिकॉर्ड किया हुवा केसेट देखते है.
वृक्ष मंदिर :-
बंजर जमीन पर पेड पौधे लगाकर उसे हरा बनाना और पर्यावरण का संतुलन करना इस प्रयोग का मुख्य ध्येय है. दादाजी ने ये प्रयोग शरू किया था और आज बहुत सी जगह पे वृक्ष मंदिर बने है.
पेड़ में भी भगवान होते है ऐसा मानकर सरू किया गया ये प्रयोग में स्वाध्याय परिवार साल में एक बार वृक्ष की पूजा करते है.
योगेश्वर कृषि :-
श्रीमद भगवद गीता के अनुसार “स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य” यानि की मनुष्य अपने कर्म के द्वारा पूजन करके परमात्मा को खुश कर सकता है.
इसी सिध्धांत के अनुसार दादाजी ने योगेश्वर कृषि की शरुआत की थी, जिसमे गाव की कोई एक जमीन या खेतर को चुना जाता है और उसमे खेती की जाती है, पूरा स्वाध्याय परिवार मिलकर खेती करता है और उसमे से जो पैसा मिलता है वो किसी जरूरतमंद आदमी को दिया जाता है.
पैसा देने के बाद जब वो आदमी के पास पैसा आ जाता है तो वो पैसा लौटा देता है. लेकिन उनसे कभी कोई मांगता नहीं है.
मत्स्यगंधा :-
जैसे की उपर बताया जहा पर खेती हो सकती है वह पर योगेश्वर कृषि है लेकिन समुंदर वाले इलाके में खेती नहीं हो सकती तो वहा पर मत्स्यगंधा होती है यानि की माछिमार लोग उसकी कमाई का कुछ हिस्सा गरीबो और जरूरतमंद लोगो में बाट देते है.
1960 में शायद दादाजी ने माछिमार लोगो के साथ कम करना शरू किया था.
मत्स्यगंधा प्रयोग शरू होने की वजह से आज ओखा से लेकर गोवा तक कोई भी गाव भूख से नहीं मर रहा है.
हिरा मंदिर :-
किसान लोग योगेश्वर कृषि में अपना योगदान देते है और माछिमार लोग मत्स्यगंधा में अपना योगदान देते है लेकिन जो लोग को इन दोनों मेसे कुछ भी नहीं आता यानि की जो हिरा घिसने का काम करते है उसके लिये हिरा मंदिर बनाया गया.
हिरामंदिर में डायमंड वर्कर्स अपनी जो कमाई होती है वो जरूरतमंद लोगो को दे देते है.
पतंजलि चिकित्सालय :-
स्वाध्याय परिवार में जो लोग डॉक्टर होते है वो अपना योगदान पतंजलि चिकित्सालय में देते है. जो बहुत दूर के गाव होते है जहा पर बहुत सुविधाये नहीं होती वहा पर हप्ते में या महीने में एक दिन डॉक्टर वहा जाकर लोगो का इलाज करते है और उसके पैसे नहीं लेते है.
इसके अलावा भी बहुत सारे प्रयोग है जैसे की श्री दर्शनम्, अम्रुतालयम, गौरस, यंत्र मंदिर, सायं प्रार्थना.
इसके अलावा भी कई ओर प्रयोग किये है दादाजी ने जो बहुत ही अच्छे है और आज भी स्वाध्याय परिवार उससे जुड़ा हुवा है. आज भी कोई भी स्वाध्याय में हिन्दू-मुस्लिम, ज्ञाति-जाती, उच-नीच, अमीर-गरीब के भेदभाव बिना सब लोग एक ही जगह पर बेठ के स्वाध्याय करते है.
स्वाध्याय में जाने की वजह से कई लोगो को उसकी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान मिलता था.
दादाजी यानि की परम पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवले के जन्म दिवस को स्वाध्याय परिवार “मनुष्य गौरव दिन” के नाम से मनाते है.
स्वाध्याय परिवार के प्रिय दादाजी सिर्फ प्रवचन ही नहीं करते थे जब भी जरुरत होती थी वो खुद भी काम में जुड़ जाते थे. बोला जाता हे की एक बार दादाजी बीमार होने की वजह से हॉस्पिटल में थे, तब उसकी हड्डीयों का xray निकाल कर जब अमेरिका भेजा तो डॉक्टर भी चकित रह गए थे और बोले की रिपोर्ट के अनुसार ये हड्डीया 300-350 साल काम करने वाले मनुष्य की होनी चाहिए. जरा सोचिए कितना काम किया होगा दादाजी ने.
स्वाध्याय परिवार की शरुआत महाराष्ट्र में हुयी थी धीरे धीरे भारत में 50000 केंद्र और 6000000 फोलोवेर्स हो गए.
स्वाध्याय की वजह से आज बहोत सारे लोग ऐसे है जिसकी शराब, जूवा और बहुत सी ख़राब आदते छुट गई है. स्वाध्याय की प्रवृति आज 100000 से भी ज्यादा गावो में फेली हुयी है और उसके 120 मिलियन से भी ज्यादा फोलोवेर्स है.
खाली भारत में ही नहीं दुनिया के ओर भी कई देशो में स्वाध्याय होता है जैसे की अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड, यूरोप, केरेबियन, अफ्रीका और भी बहुत है.
25-oct-2003 के दिन मुंबई में दादाजी ने आखरी दिन गुजारा था.
शरुआत से लेकर आज तक स्वाध्याय परिवार ने “वसुधेव कुटुम्बकम्” की भावना को जीवित रखा है.
Pandurang Shastri Athavale Movies
पांडुरंग शास्त्री आठवले यानि की दादाजी के जीवन से इंस्पायर्ड होकर श्याम बेनेगल ने एक फिल्म बनायीं थी जिसका नाम “Antarnaad” है. यूट्यूब पर आज भी आप वो फिल्म देख सकते है.
Pandurang Shastri (DADAJI) Awards :-
वैसे तो दादाजी को कई कार्यक्रम में बुलाये जाते थे लेकिन यहाँ पर कुछ खास अवार्ड्स बता रहा हु.
- Mahatma Gandhi Award in 1988
- Ramon Magsaysay Award in 1996 for Community Leadership
- Templeton Prize in 1997 for Progress
- Padma Vibhushan in 1999
Pandurang Shastri Athavale Books :-
- Gitamrutam (गितामृतम)
- देह बन गई चंदन by Rajendra Kher :-
- The Silent Reformer by Rajendra Kher :-


Pandurang Shastri Athavale Quotes :-
“Bhakti is a social force.”
“Fearlessness is a result of faith in oneself and faith in God.”
“The most Superior amongst the colours in the universe the colour of Devotion.”
“Only he who accepts clashes and conflicts in life, loves life.”
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“जय योगेश्वर”
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